Gavaskar on Kohli’s Struggles: Lessons from Federer, Djokovic, and Nadal” विराट कोहली का संघर्ष और फेडरर, जोकोविच, नडाल से तुलना”

“Federer, Djokovic, Nadal…”: सुनील गावस्कर ने पर्थ शतक से पहले विराट कोहली के संघर्ष पर की चर्चा

क्रिकेट को अक्सर रन और विकेट के हिसाब से देखा जाता है, लेकिन इसके पीछे की मानसिक दृढ़ता, फोकस और परफेक्शन की तलाश भी महत्वपूर्ण होती है। हाल के सालों में विराट कोहली का सफर इस मायने में बेहद दिलचस्प रहा है। जहां एक ओर वह आधुनिक क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में गिने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी फॉर्म में उतार-चढ़ाव भी काफी चर्चा का विषय बने रहे हैं। हालाँकि, भारत के दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने कोहली के संघर्ष के बारे में अपनी जो राय दी, वह एक नया दृष्टिकोण देती है।

गावस्कर, जिनका खुद का करियर निरंतरता पर आधारित था, ने कोहली के संघर्षों को एक बिल्कुल अलग नजरिए से देखा। उन्होंने कोहली के खेल को जोड़ते हुए टेनिस के महान खिलाड़ियों – रोजर फेडरर, नोवाक जोकोविच और राफेल नडाल के संघर्षों का उदाहरण दिया।

गावस्कर ने कहा, “आप देखिए फेडरर, जोकोविच, नडाल को… ये वो खिलाड़ी हैं जिन्होंने खेल के स्तर को ऐसा ऊंचा किया है कि लगता है जैसे उनके जैसी परफॉर्मेंस शायद ही कोई कर पाए, लेकिन इन सभी को अपने करियर में संघर्षों का सामना करना पड़ा है।”

विराट कोहली, जो कभी भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारे थे, हाल के वर्षों में अपनी फॉर्म को लेकर संघर्ष कर रहे थे। 2019 के विश्व कप के बाद से उनकी बैटिंग में उतार-चढ़ाव आया, और एक लंबी अवधि के बाद भी वह अपने 71वें शतक को नहीं बना पाए थे। हालांकि, उनकी कड़ी मेहनत और फिटनेस में कोई कमी नहीं आई, लेकिन रन बनाने में मुश्किलें आईं।

गावस्कर ने इसे बड़े खिलाड़ियों के संघर्षों से जोड़ा, जिसमें फेडरर, जोकोविच और नडाल की यात्रा का उल्लेख किया। इन सभी महान टेनिस खिलाड़ियों ने भी अपने करियर में घातक चोटों, फॉर्म के झूले और समय-समय पर खुद को साबित करने के दबाव का सामना किया है। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा वापसी की। यही वह लचीलापन और मानसिक ताकत है, जो किसी भी महान खिलाड़ी को दूसरे से अलग करती है।

कोहली का संघर्ष भी कुछ ऐसा ही था। उन्होंने अपने खेल में निरंतर सुधार की कोशिश की और फॉर्म वापस पाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया। और अंततः, यह संघर्ष उनके पर्थ में खेले गए शानदार शतक के रूप में सामने आया।

गावस्कर ने कहा, “आप मानसिक मजबूती को आंक नहीं सकते, यह सिर्फ रन या विकेट से नहीं मापी जाती। एक खिलाड़ी जब लंबे समय तक संघर्ष करता है, तो उसे फिर से खुद पर विश्वास करने और वापसी करने के लिए मानसिक शक्ति की जरूरत होती है। कोहली ने यह साबित कर दिया कि वह किसी भी हाल में हार नहीं मानेंगे। उनका पर्थ में शतक सिर्फ रन बनाने की बात नहीं थी, यह उस विश्वास की भी जीत थी जो उन्होंने खुद में रखा था।”

यहां पर गावस्कर का संदेश स्पष्ट था — महानता सिर्फ तब नहीं मापी जाती जब आप शीर्ष पर होते हैं, बल्कि जब आप मुश्किल दौर से बाहर आकर खुद को साबित करते हैं, तब ही असली महानता की पहचान होती है। विराट कोहली का पर्थ में शतक इस बात का प्रतीक था कि उनका आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत अब भी उन्हें सबसे बड़े मंच पर सफलता दिला सकती है।

फेडरर, जोकोविच और नडाल जैसे खिलाड़ी अपनी मानसिक ताकत, संघर्ष से वापसी और शानदार परफॉर्मेंस के लिए मशहूर हैं। इसी तरह, विराट कोहली भी साबित करते हैं कि क्रिकेट में सिर्फ तकनीकी कौशल ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

गावस्कर की यह सोच, जो उन्होंने कोहली के संघर्षों और फॉर्म में बदलाव पर रखी, यह दर्शाती है कि खेल में सफलता केवल परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि खिलाड़ी की मानसिकता और उसकी जिद पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। विराट कोहली का पर्थ शतक न केवल उनके क्रिकेटिंग कौशल का प्रमाण था, बल्कि यह उनकी मानसिकता और संघर्ष की कहानी भी थी, जो उन्हें महान बनाती है।

यह सबूत है कि जब किसी खिलाड़ी में मानसिक ताकत होती है, तो वह किसी भी मुश्किल से उबर सकता है और अपने शिखर पर लौट सकता है। विराट कोहली का संघर्ष और उनकी वापसी इस बात का प्रतीक है कि क्रिकेट के मैदान पर कोई भी खिलाड़ी कभी खत्म नहीं होता, जब तक वह खुद हार नहीं मानता।

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